D-mart ke malik india ke 2nd richest person

भाई के काम में हाथ बंटाकर इस शख्स ने खड़ी कर दी खरबों की कंपनी

amarujala.com: शिवेंदु शेखर Updated Fri, 24 Mar 2017 01:27 PM IST
राधाकृष्ण दमानी
राधाकृष्ण दमानी
'करत-करत अभ्यास से जड़मति होत सुजान
रसरी आवत-जात से सिल पर पड़त निसान'

उपरोक्त पंक्तियां जब लिखी गई थीं तब इसे किसी मंद बुद्धी बच्चे के लिए लिखा गया था, शायद! लेकिन हम इसे आज इस्तेमाल कर रहे हैं एक ऐसी तीक्ष्ण प्रतिभा के लिए जिसने अपनी मेहनत और लगन से देश के बड़े-बड़े उद्योगपतियों को भी सांप सुंघा दिया। 

'राधाकृष्ण दमानी', आज की तारीख में देश के 20 अमीर लोगों में से एक हैं। 2 दिन पहले तक आपने इनका नाम भी नहीं सुना होगा। आदमी ही ऐसे हैं न ज्यादा लाइम लाइट पसंद है और न ही ज्यादा चकमक, बस काम करते जाने पर भरोसा है। राधाकृष्ण दमानी डी-मार्ट कंपनी के मालिक हैं, जिसने रिटेल बिजनेस में रिलायंस और बिरला जैसी बड़ी कंपनियों को भी पीछे छोड़ दिया। शुरुआत में दमानी पिता के बियरिंग बिजनेस के साथ जुड़े थे लेकिन पिता के देहांत के बाद बिजनेस बंद हो गया। इस वक्त पर राजेंद्र दमानी को उनके भाई का साथ मिला और दमानी भाई के साथ स्टॉक ब्रोकिंग के बिजनेस में लग गए। स्टॉक मार्केट का काम सीखा और इस काम में मास्टर हो गए। लेकिन जेहन में व्यापार नाम का खून दौड़ रहा था और फिर शुरू हुआ डी-मार्ट जिसने बिजनेस इतिहास के एक कोने को अपने नाम कर लिया।  

आज की तारीख में डी-मार्ट कंपनी के देशभर में कुल 119 स्टोर ही हैं। लेकिन इसके बावजूद कंपनी ने रिलायंस और आदित्य बिरला ग्रुप जैसी कंपनियों को पीछे छोड़ दिया है। जिसके पीछे की सबसे बड़ी वजह बताई जाती है कि इसके स्टोर्स पर मार्केट से सबसे कम कीमत पर सामान मिल जाता है। लेकिन वजह क्या है... 

1. लम्बे समय का इंतजार: 

लोग कहते हैं कि देखते ही देखते रातों रात ये आदमी फर्श से अर्श तक पहुंच गया लेकिन कहने वालों को ये पता नहीं होता कि ये जो रात थी वो कितनी लम्बी थी। किसी के लिए वो रात 10 साल तो किसी के लिए 20 साल तो किसी के लिए और भी ज्यादा रही होगी। फिर जा कर इन संघर्ष की रातों और दिन के बीच से जो चमचमाता सा मिलता है न हमें सिर्फ वो दिखता है। जिस डीमार्ट की सफलता के आज लोग चर्चे कर रहे हैं वास्तव में वो 15 साल लंबे इंतजार का फल है। डी-मार्ट रिटेल चेन की शुरुआत तब हुई थी जब देश में ऐसे रिटेल चेन कदम रख ही रहे थे। 

एक भी स्टोर किराए पर नहीं

डी-मार्ट
डी-मार्ट
2. एक भी स्टोर किराए पर नहीं: 

डीमार्ट स्टोर की सफलता के पीछे इसको भी एक कारण माना जा रहा है कि डी-मार्ट ने अपने स्टोर के लिए कभी कोई जगह किराए पर नहीं ली। जब जहां स्टोर खोला इसके लिए अपनी जगह खरीद ली। इससे हुआ ये कि इनके प्रॉफिट का एक बड़ा हिस्सा जो कि किराए पर जाता वो बचा लिया जाता था। इससे कंपनी को ये फायदा मिल जाता था कि अपने प्रॉफिट को और कम करके अपने स्टोर पर सामान कम दाम में बेच सकता था।

3. किसी बड़े शॉपिंग कॉम्प्लेक्स या मॉल के अंदर स्टोर नहीं: 

एक वक्त के बाद बड़े मॉल या शॉपिंग कॉम्प्लेक्स में स्टोर खरीदना डी-मार्ट के लिए बड़ी बात नहीं थी। लेकिन राधाकृष्ण दमानी को भेंड़ चाल पसंद नहीं था और उन्होंने बिजनेस को अपनी शर्तों पर चलाने की ठानी और कभी भी बड़े मॉल के अंदर कोई स्टोर नहीं खोला। इससे दो तरह के फायदे होते थे। पहला ये कि कंपनी को बड़े भारी भरकम किराए से छुटकारा मिल जाता था और दूसरा ये कि मॉल के अंदर स्टोर खोलने वालों को एक कॉमन एरिया मेंटेनेंस कॉस्ट भी भरना पड़ता है इस खर्च को कंपनी बचा के ले गई। जिसका सीधा असर स्टोर के अंदर सामान की कीमत पर दिखता था।

उधार या क्रेडिट का काम

राधाकृष्ण दमानी
राधाकृष्ण दमानी - फोटो : 
4. स्टोर को किसी रेजिडेंशियल लोकेलिटी में खोलना: 

इस बात का हमेशा ख्याल रखा गया कि हॉट प्लेस के चक्कर में ज्यादा महंगी जगह पर स्टोर बनाने की गलती ना हो। साथ ही स्टोर हमेशा ऐसी लोकेलिटी में ही खुले जहां मिडिल इनकम वर्ग के लोग रहते हों। जिनके लिए पैसों की कीमत होती है, जिन्हें कम कीमत पर सामान की जरूरत है। ऐसे लोगों को टारगेट करके स्टोर को आगे बढ़ाया गया।

5. उधार या क्रेडिट का काम: 

रिटेल के बिजनेस में एक टाइमलाइन चलता है सप्लायर्स के साथ, जिसके मुताबिक सप्लायर को 12 दिन से 22 दिन के बीच पैसे देने होते हैं। इसमें एक दो-दिन का अंतर आ सकता है एक सप्लायर से दूसरे सप्लायर के बीच। लेकिन डी-मार्ट ने इसे ना मानते हुए सप्लायर्स को 10 दिन में 11 दिन में पैसे देने शुरू कर दिए। इससे कंपनी की एक अच्छी क्रेडिट बनी और साथ ही जो सप्लायर हैं उन्हें वक्त पर पैसे मिलने लगे जिससे कि कंपनी को कीमतों में कुछ फायदा भी दिया जाने लगा। इसका सीधा असर स्टोर में सामान की कीमतों में दिखता है।

सिर्फ 119 स्टोर

डी-मार्ट
डी-मार्ट
इसके अलावे कंपनी का ज्यादा ध्यान कभी भी स्टोर को चकमक बनाने पर नहीं रहा, इसके बजाय एक साफ-सुथरे स्टोर के निर्माण पर हमेशा कंपनी का ध्यान रहा। जिससे कंपनी कई तरह के कॉस्ट बचा ले जाती थी।

एक और बात जो ध्यान देने वाली है वो ये कि कंपनी ने आनन-फानन में आकर पूरे देशभर में अपने स्टोर फैलाने से बेहतर पहले जिन एरिया में सर्विस मौजूद है उन्हीं को सुधारने पर ध्यान लगाया और रिजल्ट हमारे सामने है। रिलायंस और आदित्य बिरला ग्रुप की कंपनियां जिनके कि 1000 से भी ज्यादा स्टोर हैं, उन्हें 119 स्टोर वाली कंपनी ने पछाड़ दिया।

वैसे तो बिजनेस में और भी कई तरीक होते हैं, कई ट्रिक्स हो सकती हैं लेकिन ये वो वजह थे जो कंपनी की वर्किंग को देखते हुए साफ-साफ सामने आते हैं।

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